एक बात भृगु ऋषि अपने पुत्र ऋचीक तथा पुत्रवधू को देखने के लिए उनके आश्रम आए। वहां पर ऋतिक तथा सत्यवती ने मन से उनका आदर सत्कार किया। उनके सेवा भाव से प्रसन्न होकर भृगु ऋषि ने कहा अपनी इच्छा अनुसार वर मांग सकती हो, इस पर सत्यवती ने वरदान मांगा कि मैं और मेरी मां दोनों पुत्र प्राप्त करें।
इसके पश्चात भृगु ऋषि ने सत्यवती को दो चारु दिए और बताया कि यह फल तुम खा लेना तथा दूसरा फल उनकी मां के लिए दिया और सत्यवती को दोनों फलों की विशेषता बताइ। इसके पश्चात भृगु ऋषि वापस चले गए। माना जाता है कि इसके बाद सत्यवती ने वह चरु फल बदल दिया था। जिससे सत्यवती ने महर्षि जमदग्नि को जन्म दिया और उनकी माता ने परम तपस्वी विश्वामित्र जी महाराज को जन्म दिया। महर्षि जमदग्नि ने राजा प्रसेनजित की पुत्री रेणुका से विवाह किया। रेणुका के गर्व रुक्मवान, सुषेण, वसु , विश्वावसु और भगवान परशुराम का जन्म हुआ था।
भगवान परशुराम जी का वास्तविक नाम राम था। परशुराम जी महाराज ने गद्य मदन पर्वत पर भगवान शिव की आराधना करके उन्हें गुरु रूप में वर्णन किया। भगवान शिव अपने शिष्य भगवान परशुराम पर प्रसन्न होकर उन्हें कई प्रकार के अस्त्र दिए जिसमें परसु मुख्य हथियार था। इसके बाद से ही उनका नाम परशुराम हुआ। भगवान परशुराम का जन्म इंदौर जिले के जानापाव पर्वत पर हुआ था। वहां आज भी भगवान परशुराम का पुराना मंदिर है। भगवान परशुराम के भक्तों को एक बार जानापाव अवश्य जाना चाहिए।